आमुखजब फ्मन लौटता हैय् को तरतीब से व्यवस्थित करना प्रारंभ किया तब.. मन न जाने कितने गलियारों से होता हुआ स्वयं तक पहुँचा! चालीस वर्षों के बहाव में टंकी थीं अनगिनत कवितायें... कुछ पन्नों पर अपने प्रारूप में, कुछ डायरी में कलमब(, कुछ तो समय के बहाव में बह गयी थीं, मुँहशुबानी कुछ भी याद नहीं था!गत तीस वर्षों से अपनी कविताओं के भाव कागश और कैनवस पर रँगों के माध्यम से उतार रही हूँ, किन्तु कलम कब तूलिका बनेगी और तूलिका...
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