इस एकांकी संग्रह में नाटकों की परम्परागत शैली से हटकर नाट्य प्रस्तुत किये गए हैं। न इनमें लोक-नाटक शामिल हैं, न एतिहासिक नाटक, न पौराणिक नाटक, न गीति नाटक। हालांकि इनको सामाजिक नाटकों की श्रेणी में ज़रूर सम्मिलित किया जा सकता है। इनमें राष्ट्रीयता की भावना जागृत करते हुए भारतभूमि के उद्धारक पात्र नहीं हैं। मातृत्व के या नारीत्व के प्रतिनिधि पात्र भी नहीं हैं। फिर भी यह एकांकी संग्रह वर्तमान काल से समकालिक है। इन एकांकियों में एकांकी का...
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