असीमित इच्छाओं और वासनाओं से पूरित आज का मानवीय समाज अनासक्त से दूर वर्तमान की गला काट प्रतियोगिता से पूरित 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' के अपने विश्व ग्राम की सुकोमल कल्पना से अनवरत विरत होता जा रहा है। मानवीय संवेदनाये तेजी से क्षरित होती जा रही है, ऐसे में अपने भविष्य की चिंता के प्रति सजग रचनाकार अपने गुरुतर दायित्व का पालन करते हुए प्रकृति व पुरुष का आलम्ब लेकर समाज में घट रही छोटी छोटी घटनाओं के माध्यम से परमपिता परमेश्वर...
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