निःशब्द
Publicado el 2 de diciembre de 2022
वो शब्द जो ख़ामोशियों में छिप कर आते हैं, हमारे ज़हन को निःशब्द कर के जाते हैं। उस घने जंगल के अविश्वसनीय अन्धकार और असीम प्राकृतिक ख़ूबसूरती को लांघते हुए, अचानक एक दिन वो बच्ची शहर की भीड़ तक पहुँच जाती है। पशुसदृश्य हरकतों और ख़ामोशी में लिप्त उस बच्ची के पास ना तो कोई अतीत है, और ना हीं कोई पहचान। उसके ज़हन में गूंजती हैं तो बस डरवाने सपनों की चीखें, शरीर और मन पर हैं, तो बस असहनीय ज़ख्मों के निशान, और...
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