जीवनधारा संग्रह में जिंदगी "मैं जिंदगी हूं" कहते हुए स्वयं को परिभाषित करते हुए महाप्रपात, महासागर, भूख, छलों का पाठ्यक्रम, एक आँसू, एक हंसी, लंबा रास्ताजैसे संबोधन स्वयं को देते हुए बहती जाती है और पाठकों को अपनी भावधारा में दूर, बहुत दूर बहा ले जाती है।
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