जीवन के विभिन्न भावों को काव्य रूप में सजाने में निपुण सुनीता माहेश्वरी का जन्म १ जून १९५१ में अलीगढ़ (उ.प्र.) में एक संपन्न परिवार में हुआ| इनकी माता श्रीमती चंद्रवती केला तथा पिता श्री राम स्वरूप जी केला धार्मिक प्रवृत्ति के थे | सुनीता माहेश्वरी के व्यक्तित्व में अपने माता- पिता के संस्कारों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है| मन वचन और कर्म से भारतीयता तथा राष्ट्रीयता का भाव, उनके व्यक्तित्व की गौरव पूर्ण निधि है|
सुनीता जी की शिक्षा अलीगढ़ में ही हुई | इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम. ए. तथा एम. एड. किया | तत्पश्चात अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम. ए. किया |
सुनीता जी ने निर्मला कॉन्वेंट स्कूल तथा दी आदित्य बिड़ला पब्लिक स्कूल, रेनुकूट में शिक्षण कार्य किया| इन्हें अपने छात्रों पर बहुत गर्व है | साहित्य पठन - पाठन में इनकी सदैव रुचि रही | इस कार्य में उन्हें अपने पति श्री हरी कृष्ण माहेश्वरी का सदैव सहयोग मिलता रहा |
सेवा निवृत्ति के बाद ये साहित्य सृजन कार्य कर रही हैं | इनकी कुछ कविताएं विश्व मैत्री मंच से प्रकाशित ‘बाबुल हम तोरे अँगना की चिड़िया’ पुस्तक में प्रकाशित हुई हैं| इसके अतिरिक्त पत्रिकाओं में कविताएं एवं कहानियां प्रकाशित होती रहती हैं|
प्रतिलिपि .कॉम तथा स्टोरी मिरर. कॉम पर कहानियां एवं कविताओं का प्रकाशन होता रहता है |
आकाशवाणी नाशिक एवं रेडियो विश्वास नाशिक से इनकी कविताएं एवं कहानियां प्रसारित होती हैं |
सुनीता माहेश्वरी साहित्य सरिता हिन्दी मंच नाशिक (कार्यकारिणी सदस्या) , अखिल भारतीय साहित्य परिषद नाशिक (कार्यकारिणी सदस्या),अखिल हिंदी साहित्य सभा , विश्व मैत्री मंच की महिला कार्यकारिणी सदस्या के रूप में हिन्दी साहित्य की सेवा में तत्पर हैं |
"ज़िंदगी के गलियारों से" एक ऐसा कहानी संग्रह है, जिसमें हमारे आपके जीवन से जुड़ी विविध विषयों पर पारिवारिक, सामाजिक, प्रेम कहानियाँ संग्रहीत हैं इन कहानियों में समस्याएं हैं तो उनका समाधान भी है भावों तथा विषय के अनुकूल भाषा शैली होने के कारण कहानियाँ स्वाभाविक एवं जीवंत हैं । दिल को छू लेने वाली ये तेरह कहानियाँ कुछ इस प्रकार हैं -
"एक पहल ऐसी भी" कहानी वृद्धों तथा बेसहारा बालकों, की समस्या को एक नया आयाम देती हुई कहानी है । कहानी का एक अंश -"मैं चाहती हूँ क्यों न ऐसा "बाल-वृद्ध आनंद धाम" खोला जाए, जहाँ वृद्ध व अनाथ बच्चे साथ रहें । एक परिवार जैसा वातावरण हो । बच्चे, खास तौर पर बालिकाएँ सुरक्षित हों ।"
"प्रीत पावनी" हृदयस्पर्शी संवेदनशील व कोमल कहानी है, जो प्रेम को गहरे व पावन अर्थों में परिभाषित करती है । इसी कहानी का एक अंश प्रस्तुत है - "महक के गाल शर्म से गुलाब जैसे लाल हो गए थे । वह नीची नज़र किये हुए मुस्करा रही थी । मोहित ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया । बिना भाषा के ही महक ने आँखों ही आँखों में स्वीकृति दे दी थी । मौन मुखर हो उठा था ।"
"करवट बदलते रिश्ते" जीवन की एक भूल और उसे न मानने की सजा किस प्रकार किसी दूसरे के जीवन की दारुण व्यथा बन जाती है, इसका मार्मिक चित्रण है "प्यार का भूत" लव जिहाद के खिलाफ समाज को सचेत व जागरूक करती हुई कहानी है इस कहानी का अंश -"प्यार की कसक में दीवानी आरती अपने को लाख प्रयास करने पर भी न रोक पाती । रिज़वान का इश्क उसे अंदर तक प्यार के रंग में सराबोर कर देता । रिज़वान के बिना तो उसे अपना जीवन ही रंगहीन लगने लगा था । वह घर के संस्कारों की ओर झुकना चाहती, पर कमबख्त इश्क के सामने उसे कुछ दिखाई नहीं देता ।" "विद्रोह" किशोर वय के मनोविज्ञान पर आधारित सशक्त कहानी है । इस कहानी का एक अंश देखिए - "किशोर उम्र में जहाँ मन अनेक सुनहरे सपने देखता है । अपने सौंदर्य को बार-बार शीशे में निहारता है । लाखों आशाओं-आकांक्षाओं को सजाता है । दिवास्वप्न की दुनिया में खोया रहता है, उस नाजुक सी उम्र में विक्रम को अपमान, पीड़ा, अन्याय का कष्ट झेलना पड़ रहा था ।"
"रिटायरमेंट"- रिटायरमेंट के बाद जीवन खत्म नहीं हो जाता, जीवन में पतझड़ नहीं आता, यह तो एक नए वसंत के आगमन की उम्र है । "जब जागे तब सवेरा" कहानी विदेश की झूठी चकाचौंध का भ्रम तोड़ती है । अपना देश अपना ही होता है बस दिल से यह महसूस करने की जरूरत भर है । इस कहानी का अंश प्रस्तुत है -"पापा मुझे कहीं नहीं जाना । मैं भारत में रहकर आपको कुछ बनकर दिखाऊँगी । अगर में विदेश चली गई तो अपनी भाषा, अपने देश की मिट्टी, माँ के हाथ का खाना, आपका प्यार, नाना-नानी, दादा-दादी का दुलार और ये रिश्तों का संसार कहाँ मिलेगा मुझे ?"
"ज़िंदगी की शाम" एक स्त्री की अदम्य जिजीविषा व साहस की कहानी है, जिसने दुख की घड़ी में न सिर्फ स्वयं को संभाला, वरन मंदबुद्धि बेटी व पोती का भी जीवन सँवारा । साथ ही बेटे द्वारा ही मुखाग्नि देने की परंपरा का विरोध कर, एक नई परम्परा भी स्थापित की ।
"कालचक्र" कहानी - अच्छा हो या बुरा प्रत्येक कर्म का फल इसी धरा पर भोगना पड़ता है । परोपकार के कर्मफल हमें कब कैसे मिल जाएं, कोई नहीं जानता । ऐसे ही कर्मफल की यह एक सरस कहानी है ।
"जी उठा तुलसी का पौधा" कहानी विवाह में दिखावे की संस्कृति की विसंगति की ओर इशारा करती है । इस कहानी का अंश -"विषम स्थिति में भी प्यार के कुछ पल उन्हें अनोखी ऊर्जा दे जाते थे । अपने सपनों के साथी की बाहों में दिल की धड़कन की सरगम उन्हें प्यार के असीम आनंद में निमग्न कर देती । एक दूसरे का प्यार पाकर वे सारे दुखों को भूलकर खुशी की एक नई दुनिया में कुछ पलों के लिए खो जाते ।"
"अपने पराए" कहानी जीवन की विषम परिस्थितियों में, गहन दुख में अपने पराए का भेद स्पष्ट करती है । "जंग ज़िंदगी की" कोरोना से लड़ते हुए एक
डॉक्टर की अपनी जिंदगी से जंग जीतने की रोमांचक कहानी है । यह चिकित्सा विभाग से जुड़ी एक भावुक सच्चाई है ।
Título : ज़िंदगी के गलियारों से
EAN : 9789391763015
Editorial : सुनीता माहेश्वरी
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