कोई पण सिरजण करणार आपणां रचनाकर्म मअें पौते खुद आपणी हाज़री मांडै'स खरौ भले ई हेता अे जगत ना समाज नी वकालत आपडी रचना मअें मांडतो देखाय। अैना सिरजण नी सरुआत आंतरिक द्वन्द थकी थाय। मोटियार साहित्यकार किशन 'प्रणय' नु 'अंतरदस' काव्य संग्रै आ वात नी हामी भरै कै रचना कैम ने कैणासारु थाय। मानसिक द्वन्द ना कारण थकी संवेदना नु उदय थाय ने सिरजण नु रूप लेती जाय। मनखाचारा ना अनुभव थकी संवेदना, अनुभूति ने अनुभव...
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