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क्या हम खुश नहीं हैं ? संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास समाधान नेटवर्क (एसडीएसएन) द्वारा जारी , वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स रिपोर्ट- 2022 तो यही बताती है। विश्व में जहाँ एक और टॉप दस देशों में पांच नार्डिक देश हैं। वहीं भारत नीचे के ग्यारह देशों में सम्मिलित हैं। यहाँ तक कि एशिया के अन्य देश एवं भारत के पडोसी देशवासी भी भारतीयों से ज्यादा खुश हैं ।
व्यक्तिपरक कल्याण की रिपोर्ट की माप तीन मुख्य कल्याण संकेतकों पर निर्भर करती है:-
जीवन मूल्यांकन
सकारात्मक भावनाएं
नकारात्मक भावनाएं
हालांकि खुशी एक व्यक्तिपरक गुणात्मक अवधारणा हैं जिसका गणन मुश्किल हैं फिर भी इसकी गणना निम्नलिखित छः पैरामीटर्स के आधार पर की जाती है ।
प्रति व्यक्ति जीडीपी
सामाजिक समर्थन
स्वस्थ जीवन प्रत्याशा
जीवन विकल्प चुनने की स्वतंत्रता
उदारता
भ्रष्टाचार पर धारणा
कोविड काल की एक सबसे अच्छी बात यह रही है कि दुनिया भर में तीन तरह की परोपकारी गतिविधियों में उछाल आया है:-
अजनबी की मदद करना
स्वेच्छा से काम करना
दान देना
रिपोर्ट के सामान्य अवलोकन के अनुसार अधिकांश देशों में तनाव, चिंता और उदासी में दीर्घकालीन मध्यम उर्ध्वगामी प्रवृत्ति रही है और जीवन के आनंद में मामूली दीर्घकालिक गिरावट आई है।
अर्थात इन पैरामीटर्स के आधार पर विकसित अर्थव्यवस्थाएं एवं पृथ्वीवासी धीरे -धीरे खुशी की चाह में और अधिक दुःखी होते जा रहे हैं।
हमारा सुख और दुःख हमारे नज़रिये पर निर्भर करता हैं ।
हम दुःख को सुख की तुलना में अधिक मूल्य देते है।
क्या हैं ? से अधिक क्या नहीं हैं ? क्यों नहीं हैं ? पर अधिक ध्यान देते हैं।
जो वृद्धि और विकास के लिए तो लाभदायक हैं पर हमारी चिंताओं को बढ़ाता हैं।
एक की वृद्धि दूसरों को प्रभावित करती हैं, जो वृद्धि कर रहा हैं उसकी तुलना में जो पीछे छूट गया हैं उनकी संख्या कई गुणा हैं।
अतः पीछे छूटने वालों का दुःख, वृद्धि करने से सृजित सुख की तुलना में ज्यादा हैं और यही समग्र दुःख को बढ़ाता हैं।
मात्र नज़रिये के बदलाव से हम दुःख को सुख में बदल सकते हैं। नंबर वन तो कोई एक ही रहेगा पर हमेशा नहीं।
पीछे छूटने का गम, यदि कर्म पथ से विचलित ना करें, अधिक प्रयास को प्रेरित करें , सीखने की लालसा को बढ़ाए, नवाचार और बदलाव हेतु उत्साहित रखें तो एक की सफलता से सृजित सुख, अनंत सुखद परिणाम दे जायेगा और समग्र सुख को बढ़ाएगा।
यह दुनिया एक आभासी दुनिया है। यह आपके और हमारे विचारों से निर्मित है। हमारे विचार, हमारी सोच से निर्मित होते हैं, हमारी सोच हमारे वातावरण पर निर्भर करती हैं, वातावरण हमारे नियंत्रण में नहीं होता, अतः हमारे विचार हमारे व्यवहार को प्रभावित करते हैं, इसी कारण से पीढ़ी दर पीढ़ी विचार और व्यवहार में परिवर्तन होता रहता है। पिछली पीढ़ी के विचार अगली पीढ़ी तक उसी रूप में नहीं पहुंचते उनमें बदलाव स्वाभाविक है। बदलाव, परिवर्तन,नवीन विचार, नवाचार ही जीवन की सततता का आधार हैं। बदलाव की स्वीकारोक्ति समाज की जीवन्तता का परिचायक हैं। प्रकृति का स्वाभाव ही परिवर्तन हैं।
क्योंकि समय बदलता है, इसलिए विचार बदलते हैं, विचार बदलते हैं इसलिए व्यवहार बदलता है, व्यवहार बदलता है इस कारण अगली पीढ़ी पिछली पीढ़ी की तुलना में अधिक उत्साहित होती हैं और यही उत्साह जीवन हैं। अर्थात हमारा नज़रिया ही हमारी दशा और दिशा निर्धारित करता है। किसी ने सही कहा हैं-
कश्तियाँ बदलने की जरूरत ही कहा हैं ?
कश्ती के रूख को बदलो किनारे बदल जायेंगे।
सोच को बदलो सितारें बदल जायेंगे।
नज़रिये को बदलो नज़ारे बदल जायेंगे।
आज युवाओं के समक्ष कई समस्याएं हैं। मानव जीवन की सबसे बड़ी समस्या यह हैं की उसे अपने होने का अहसास नहीं हैं। उसे उसके होने का उद्देश्य पता नहीं हैं। प्रकृति का प्रत्येक सृजन एक अनंत उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हुआ हैं। जब तक हम हमारे वज़ूद की वजह से वाक़िफ़ नहीं हैं हमें हमारे होने का अहसास नहीं होगा। जब तक हम छोटी - छोटी बातों में उलझे रहेंगे तबतक हम समग्र उद्देश्य के दर्शन नहीं कर पाएंगे। अतः आवश्यक हैं कि हम बदलाव से डरे नहीं और अपने नज़रिये को बदले।
Título : नज़रिया
EAN : 9798201307943
Editorial : Kailashi Global Publications
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