कल जो हुआ वह इतना मजेदार नहीं था, जितना आज का कार्यक्रम होगा। आज चुनरी यात्रा है, जो गाँव में घूमते हुए दुर्गा जी के मंदिर तक जायेगी। आज मेरा रविवार का व्रत भी है और मैं आज के दिन के लिए उत्सुक हूँ, यह दिन अच्छा रहेगा।
कल नहा-धोकर मंदिर पर आरती के लिए गया। मैं डीजे बजा रहा था, तभी मुझे बार-बार परेशान कर रहे, एक व्यक्ति को मैंने अच्छे से ही सुना दिया। हुआ ऐसा था, कि जब भी मैं भजन चलाता, वह मुझे परेशान करने आ जाता। वह यदि मुझसे हर दिन प्यार से कहता तो मैं जरूर उसकी बात मान लेता, पर पिछले चार दिनों से हर दिन रौब झाड़ता था, वह मुझे कमजोर समझ बैठा था, जैसा कि मैं पहले ही भी बता चुका हूँ, कि लोग नरम स्वभाव होने के कारण मुझे कमजोर समझ बैठते हैं। ऐसा ही वह व्यक्ति समझ रहा था, कि देव थोड़े ही कुछ कर लेगा, उस पर तो रौब झाड़ना ही चाहिए।
अब मैं उसके अहंकार को तीन दिन तक सहन करता रहा, चौथे दिन भी उसने तीन चार बार मुझे सुबह-सुबह ही टोक दिया, तो मेरे मन में आया, "अब यह ऐसे तो नहीं मानेगा, इसे जरा सी बूटी देनी ही होगी।"
पहले मैंने उसे आराम से समझाने की सोची, पर फिर दिमाग में आया कि बिना आक्रामकता के यह सुधरने वाला नहीं है, कुत्ता मान डंडा खाए।
फिर मैंने मन बना लिया कि यदि यह अब बोला तो उस देव को देखेगा, जिसे बहुत कम लोग देखते हैं और उस मूर्ख ने सच में मुझे फिर छेड़ दिया, तो मैं भभक उठा। पूरे क्रोध को इकट्टा करके, वहाँ जितने लोग थे, उनके सामने ही, उस पर बरस पड़ा, उनमें से किसी ने भी मेरे इतने तिरछे रवैये की कल्पना नहीं की थी। सब चौंके हुए थे, वह सब यही सोच रहे थे कि देव तो ऐसा नहीं है। उनमें कुछ औरतें भी थीं मुझे और मेरे गुस्से को देख रहीं थीं।
इस क्रोध से मैंने कई कार्यों को साध लिया, इस क्रोध से उस व्यक्ति को सबक मिल गया। जिसने मुझे इस गुस्से में देखा, वह संभल गया और जो औरतें थीं, वह बात को गाँव में फैलाने में व्यस्त होने निकल गईं। जितने भी लोग मेरे इस क्रोध को जानेंगे, उनकी प्रतिक्रिया कैसी भी रहे पर वह मुझसे दुष्टता करने की कोशिश नहीं करेगें।
मैं किसी को परेशान नहीं करता हूँ पर मुझे परेशान करने वाले कभी शांति से नहीं बैठ पाते हैं। मैं नरम स्वभाव अवश्य रखता हूँ, मैं लोगों को स्वाभिमान की अंतिम सीढ़ी तक माफ करता रहता हूँ, पर यदि वह नहीं मानते हैं तो फिर मुझे ऐसा तरीका सोचना पड़ता है।
मैं शांति प्रिय व्यक्ति हूँ और यदि कोई व्यक्ति मेरी मानसिक शांति भंग करने की चेष्टा करता है तो वह अच्छे से ही चोट खाता है। वह अपना स्वाभिमान तक खो बैठता है।
वह व्यक्ति उम्र में मेरे पापा जी से भी बड़ा था, इसलिए मुझे इस तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए था, पर असल मे बड़े वह हैं, जो बडप्पन करें, ओछापन दिखाने वाले चाहे मेरे से लाख साल बड़े हों, मैं नही झुकूँगा। मुझे लोग बड़े या छोटे नहीं दिखते हैं। मुझे परेशान करने वाले सिर्फ मेरे दुश्मन होते हैं। फिर मैं नहीं देखता कि उनकी उम्र कितनी है।
इस क्रोध के बाद भी हमने भजन चलाए, फिर चंद्रेश महाराज भी आ गए, तब हमने माताजी की आरती की। पर आज हर दिन की भांति वहाँ से जल्दी नहीं लौटे बल्कि वहीं भजन चलाते रहे।
मैं साढे नौ बजे घर वापिस आया, नास्ता किया फिर पढ़ने बैठ गया। पढ़ने में मन नहीं लग रहा था, क्योंकि मुझे नींद आ रही थी, इसलिए में सो गया।
Título : शरद नवरात्र: मंदिर में बीते मेरे नौ मनभावन दिन
EAN : 9798224368709
Editorial : Sahitya press
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