भूमिका
किन्नर समाज पर लिखे साहित्य का इतिहास अधिक पुराना नहीं है। सही मायने में हिन्दी में यह बीसवीं सदी के अन्तिम दो दशकों में हमारे सामने आना शुरु होता है। छुटपुट रूप में इससे पहले भी इक्का-दुक्का कहानियाँ अवश्य लिखी गईं, पर अधिकतर लेखकों का रुझान इस ओर नहीं रहा। हिन्दी में शिवप्रसाद सिंह की कहानियाँ -'बहाव वृत्ति' और 'बिदा महाराज', सुभाष अखिल की कहानी 'दरमियाना' (सारिका अक्तूबर 1980), कुसुम अंसल की कहानी 'ई मुर्दन का गाँव' और किरण सिंह की कहानी 'संझा' (2013) आदि कहानियाँ मिलती हैं। असल में, किन्नर समाज पर तेज़ी से लेखन सन 2000 के बाद ही देखने को मिलता है।
हिन्दी में उपन्यासों की बात करें तो किन्नर समाज पर केन्द्रित उपन्यास सन 2000 के बाद ही दिखाई देते हैं जिनमें नीरजा माधव का उपन्यास 'यमदीप' (2002), डॉ. अनसूया त्यागी का उपन्यास 'मैं भी औरत हूँ' (2005), महेंद्र भीष्म का उपन्यास 'किन्नर कथा' (2011), 'मैं पायल' (2016), प्रदीप सौरभ की कृति 'तीसरी ताली' (2014), चित्रा मुद्गल का 'पोस्ट बॉक्स नंबर 203 नाला सोपारा' (2016), भगवंत अनमोल का उपन्यास 'ज़िन्दगी 50-50' (2017), सुभाष अखिल का 'दरमियाना' (2018), मोनिका देवी के दो उपन्यास 'अस्तित्व की तलाश में सिमरन' (2018) और 'हाँ, मैं किन्नर हूँ: कांता भुआ' (2018)
हिन्दी की तरह ही कुछेक भारतीय भाषाओं में भी किन्नर जीवन को लेकर लिखा साहित्य 2000 के बाद ही देखने को मिलता है जैसे मराठी में लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी की आत्मकथा 'मैं हिजड़ा, मैं लक्ष्मी' (हिन्दी में 2015), बांग्ला में किन्नर पर आत्मकथा (2018) 'पुरुष तन में फंसा मेरा नारी मन' (डॉ. मलेबी वंधोपाध्याय), मलयालम में मलिका वसंथम (आत्मकथा)-(लेखिका: विजयराज मल्लिका), ओरू मलयाली हिजादयुदे (आत्मकथा) (लेखक: जेरेना)। उड़िया में माहेश्वता साहू का नाम भी आता है।
पंजाबी में भी अधिकतर किन्नर केन्द्रित लेखन हिन्दी की तरह ही 2000 के बाद ही सही मायने में प्रारंभ हुआ। इससे पहले छुटपुट कहानियाँ ही मिलती हैं। 2015 में पंजाबी के युवा कथाकार जसवीर राणा ने एक किताब 'किन्नरां दा वी दिल हुंदा है' संपादित की जिसके तीसरे संस्करण में किन्नर केंद्रित करीब 25 कहानियाँ शामिल की गईं। पंजाबी की प्रसिद्ध त्रैमासिक पत्रिका 'शबद' (संपादक: जिन्दर) का किन्नर संबंधी कहानियों का विशेषांक 2017 में आया। जहाँ तक उपन्यास की बात है, सन 2000 के बाद पंजाबी में ऐसे तीन उपन्यास तो आए जिनमें किन्नर समस्या को आंशिक रुप से छुआ गया जैसे सुखबीर का उपन्यास 'अद्धे पौणे', धरम कम्मियाणा का उपन्यास 'उखड़े सुर' और 'मैं शिखंडी नहीं' (राम सरूप रिखी)। लेकिन पंजाबी में चार उपन्यास ऐसे भी सामने आए जिनमें किन्नर जीवन और उसके समाज को ही पूरी तरह कथाभूमि बनाया गया है। वे उपन्यास इस प्रकार हैं - बलजीत सिंह पपनेजा के 'संताप' (2012) और 'संताप दर संताप' (2017), हरकीरत कौर चहल का 'आदम ग्रहण' (2019) और हरपिं्रदर राणा का 'की जाणा, मैं कौण' (2019)।
'आदम ग्रहण' उपन्यास को जब मुझे हिन्दी में अनुवाद करने के लिए कहा गया तो इस समाज की बहुत सारी बातों से मैं अनभिज्ञ था। अनुवाद करते हुए मैंने अपने पुराने कथाकार मित्र सुभाष अखिल ('दरमियाना'के लेखक) से किन्नर समाज को लेकर घंटों-घंटों बातें कीं। उनसे मुझे कई नई जानकारियाँ मिलीं जो अनुवाद के समय मेरी सहायक भी बनीं। पंजाबी में किन्नर समाज पर लिखे साहित्य को लेकर लेखिका के अलावा पंजाबी के तीन कथाकारों - जिन्दर, जसवीर राणा और निरंजन बोहा से भी मेरी निरंतर फोन पर चर्चाएँ होती रहीं, जो निःसंदेह बहुत लाभप्रद रहीं।
हरकीरत कौर चहल का यह उपन्यास अमीरा से मीरा बनी किन्नर की मर्मस्पर्शी दास्तान समेटे हुए है। खूबसूरत भाषा की रवानगी इस उपन्यास की गति और लय को बनाये रखने में सक्षम रही है जिसकी वजह से यह उपन्यास और अधिक पठनीय बन पड़ा है। इस गति और लय को मैंने अपने अनुवाद में पकड़ने का पूरा प्रयास किया है, कहाँ तक सफल हुआ हूँ, यह तो पाठक ही बताएँगे।
अंत में, 'इंडिया नेटबुक प्रकाशन के स्वामी डॉ. संजीव जी का मैं हृदय से आभारी हूँ कि जिन्होंने कोरोना काल में आगे बढ़कर न केवल इस उपन्यास को प्रकाशित करने में अपनी रुचि दिखलाई, अपितु बड़ी तत्परता से इसके प्रकाशन पर काम करके इसे हिन्दी के विशाल पाठकों के सम्मुख बड़े सुंदर और आकर्षक रूप में लेकर भी आए।
हिन्दी का पाठक इसे अवश्य पसन्द करेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
- सुभाष नीरव
नई दिल्ली
Título : Aadam Grehan
EAN : 9789389856903
Editorial : INDIA NETBOOKS indianetbooks
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