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साहित्य प्रेस हिंदी पत्रिका
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From imside.
1.
अपने गाँव जाने के लिए अधीर हो उठा।
मैंने मामा जी से कहा कि मुझे आज ही बस में बिठा दो। तब मामा जी कहने लगे कि कल चले जाना। मुझे अच्छा नहीं लगा, मुझे हर पल बैचेन कर रहा था, अपने गाँव को देखने की तीव्र इच्छा मन में जाग गई थी, मेरा गाँव कैसा हो गया होगा, वहाँ के लोग कैसे रह रहे होंगे, मेरे पुराने सहपाठी कैसे होंगे? ऐसे प्रश्न मेरे मन में उठ रहे थे।
मैं हर पल गाँव के बारे में सोच रहा था। मामाजी ने मना किया तो मुझे समझ नहीं आया कि क्या करूँ। एक दिन रुकना भी बहुत मुश्किल था। पर मामा जी ने मना कर दिया था तो जाना कैंसल हो गया, पर मेरे से सहन नहीं हो रहा था, मैं मामा जी को कैसे मनाऊँ यह समझ नहीं आ रहा था। मैंने दुखी और अधीर होते हुए कपड़े पैक कर लिए, बैग भर लिया। सब तरफ से तैयार था। बैठकर अपने घर के बारे में सोच रहा था, वह फीलिंग, वह बातें मुझे आज भी याद हैं।
मामा मुझे बिठा दो बस में,
अपने गाँव जाऊँगा।
खेलूँगा मित्रों के संग में,
गाने गाऊँगा।
देखूँगा वो प्यारी गलियाँ,
खेतो की न्यारी बलियाँ,
उनसे धूप चुराऊँगा,
मामा मुझे बिठा दो बस में
अपने गाँव जाऊँगा।
2.
एक दिन बहुत बुरा हुआ। मेरी तो लगभग जान ही निकल गई थी। मैं खेत पर जा रहा था, अपनी कविताएं गाते हुए,
"सुबह सुबह जब जलेगी होली,
आँच लगेगी थोड़ी थोड़ी,
तब तुम चिल्ला देना,
री परियों मुझे उठा देना।
मैं दौड़ के जाऊँगा,
भूँज के बालें खाऊँगा,
सूरज निकलेगा धीरे-धीरे
तब तक राख उड़ाऊंगा।
नाचेंगे सब गायेंगे सब,
मैं हँस-हँस साथ निभाऊँगा,
बस तुम गहरी मेरी नींद,
चुरा लेना,
री परियों मुझे उठा देना।"
पुरानी कविताएं गाते-गाते मैं नई कविताएं भी बनाता जा रहा था, जिनमें शायद कुछ भी नहीं था।
जैसे
जो सब फसले हैं मेरे हाथ की हैं,
यह सारी जमीन मेरे तात की है
हट तो जाओ रास्तों से री झाड़ियों
हँसिया पर मैंने अभी धार की है।
इस तरह मैं चलता जा रहा था, तभी बिल्कुल काला स्याह साँप मेरे सामने प्रकट हो गया। मुझे लगा वह मेरी कविता सुनकर भाग रहा है कि अंकित अभी झाड़ियाँ काटकर, मुझे मार देगा। पर इस बात का तो मैंने तुंरत विचार ही त्याग दिया क्योंकि वह अच्छे मूढ में नहीं था।
मेरे पैर के पास एकदम खड़ा हो गया और पाँव पर वार करने के लिए लपका। मुझमें अचानक इतनी फुर्ती आई कि मैंने फटाक पैर हटा लिया। मौत से ही बचा।
पैर हटने से, उस साँप का मुँह मिट्टी में घुस गया, उसे दर्द हुआ, और मुँह में मिट्टी भी घुस गई, जिसका टेस्ट जरूर खराब था, क्योंकि उसके बाद साँप उसे गुस्से में बार-बार थूँक रहा था। जब उसके मुँह से मिट्टी निकल गई
तो वह दोबारा मेरी और लपका।
3.
मैं अभी थोड़ी देर पहले लिखने आया था, मैं समझ नहीं पा रहा था कि कहाँ से लिखना शुरू करूँ, क्या लिखूँ, मैंने लिखना प्रारंभ किया पर नहीं लिख पा रहा था, इस चक्कर में मैंने खुद से कहा,
"अब शाम को लिखेंगे, अभी पढ़ना ठीक रहेगा तो मैं लिखे हुए को डिलीट करके पढ़ने के लिए चला गया, पर जैसे ही मैंने किताब खोली मेरे मन में आया, तुम लिख क्यों नहीं रहे हो? जब तुमने तय किया था कि लिखना है तो पढ़ने क्यों आ गए? डरकर क्यों भाग आए? तुम तो कमजोर व्यक्तियों कि तरह हो रहे हो, यदि जरा-जरा सी दिक्कतों से भागते रहोगे तो बताओ क्या तुम खुद से नजरें मिला पाओगे? क्या तुम कायरों की तरह बर्ताब नही कर रहे हो? शूरवीर, युद्ध में पहुँचने के बाद लौटते नहीं हैं, एक बार पहुँच गए और एक बार तय कर लिया कि लड़ना है, तो वह डरकर भाग नहीं पड़ते हैं। उन्हें फिर सेना से डर नहीं लगता है, चाहे वह अनंत ही क्यों न हो, वह लड़ते हैं, लड़ते जाते हैं। या तो मर जाते हैं या युद्ध समाप्त करके एक जीत के साथ सम्मान पाते हुए शान से लौटते हैं।
Título : मेरी बातें
EAN : 9798224621958
Editorial : Sahitya press
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