1.
नारायण की कार
बात 2017 की है, मैं इंजीनियरिंग फर्स्ट ईयर में था। नारायण मेरा कॉलेज दोस्त है। हम इंजीनीयरिंग में साथ में पढ़ते थे। वह चाँपाखेड़ा का है, जो उज्जैन के उस पार, रतलाम या मंदसौर जिले में है। वह किराए से भोपाल रुकता था। मैं गाँव से ही जाया करता था। जिन अंकल के यहाँ वह रुकता था, उनसे उसके पुराने संबंध थे। उसके चाचा भी भोपाल मे ही पड़ते थे तो वह अंकल उनकी ही जान पहचान के थे। नारायण का खाना भी उनके ही घर पर होता था। वह उनका पेईंग गेस्ट था। नारायण उनके साथ कहीं-कहीं आता-जाता रहता था, वह उनके परिवार के साथ उनके रिस्तेदारों में भी जाया करता था।
अंकल के एक रिस्तेदार साँची में भी थे, उनके घर शादी थी। अंकल का पूरा परिवार निमंत्रित था, तो अंकल ने नारायण को परिवार को लेकर भेज दिया, वह अगले दिन आने वाले थे। यह मई-जून 2017 की बात है। गर्मी चल रहीं थीं। हम हर दिन कॉलेज जाते थे।
नारायण की और मेरी कॉलेज में ही बात हो गई थी। उसने बता दिया था कि मैं साँची आ रहा हूँ, तो यह सुन उसे मैंने अपने घर इनवाइट कर लिया था। कॉलेज की छुट्टी हुई। अपने नारायण कमरे पर पहुँचा तैयार हुआ और अंकल की काली स्कोडा रैपिड कार उठाकर उनकी फैमली के साथ साँची के लिए निकला। मैं उससे पहले ही कॉलेज बस से अपने घर की तरफ चल दिया।
नारायण भोपाल से लेट निकला था, पर साँची हमसे जल्दी पहुँच गया, क्योंकि उसने कार औसतन 80-90 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से चलाई थी। बड़ी कार थी, तेज चलती थी। बस इतने तेज नहीं चलती थी। मैं उसके बहुत बाद साँची पहुँचा, उसने तब तक पूरी साँची घूम ली होगी या फिर सभी रिस्तेदारों से मिल लिया होगा। मैं पहुँचा और मैंने उसे फोन लगाया
"हलो," मैंने कहा।
"आ गया?" उसने पूछा।
"हाँ आ गया हूँ, तू कहाँ है?"
"मैं इधर शादी में ही हूँ।"
"कहाँ है घर, मैं आता हूँ।" मैंने कहा।
"तू क्या करेगा यहाँ?"
मुझे सुनकर बेकार लगा कि लो यह चाहता ही नहीं कि मैं इसके अंकल के रिस्तेदार का घर देखूँ। मैं कौन वहाँ कुछ खा लूँगा, पर मैं गुस्सा नहीं हुआ। मैं समझ गया कि नारायण नहीं चाहता कि उसकी आँटी मुझसे मिलें। मैंने आगे कहा,
"तुझे लेने आ जाता हूँ, तू रोड तक कैसे आएगा?" मेरे पास बाइक थी, यामाहा क्रक्स, मैं इसी से साँची आया-जाया करता था, जनवरी 2019 में इसे बेंच दिया और नई गाड़ी ले ली थी।
"अरे मैं ही आ जाता हूँ, मुझे वैसे भी पता नहीं है कि यह कौनसा मोहल्ला है?"
"तो किसी से पूछ ले।"
"अरे रहन दे, मैं ही बाहर आ रहा हूँ, तू वहीं रुक।"
मैं कुछ और कह पाता उससे पहले, उसने फोन काट दिया। मैंने गाड़ी उठाई और मैं गुलगाँव रोड या कहें उदयगिरि रोड पर जाकर खड़ा हो गया और उसका इंतजार करने लगा। वह कुछ देर में काली कार लेकर वहाँ पहुँचा। मैं सोच रहा था कि वह पैदल आएगा, इसलिए गलियों में देख रहा था, उसे कार में देखकर मैंने कहा,
"क्यों, कार में तो आ गया, मैं पहले ही बोल रहा था लेने आ जाऊँ, अब इस कार को छोड़ने जाना पड़ेगा।"
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Título : नया जमाना आया है : मेरे जीवन की कुछ अनोखी घटनाएं
EAN : 9798227149398
Editorial : Sahitya press
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